बात 23 मार्च 1931 की शाम की है। भगत सिंह प्राणनाथ मेहता की लाई लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। अफसर ने दरवाजा खोला और कहा, “सरदार जी, फांसी लगाने का हुक्म आ गया है। तैयार हो जाइए।” भगत सिंह के हाथ में किताब थी, उससे नज़रे उठाए बिना ही उन्होंने कहा, “ठहरिये! एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है।” कुछ और पंक्तियां पढ़कर उन्होंने किताब रखी और उठ खड़े होकर बोले, चलिए!...और इस प्रकार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को तय दिन से एक दिन पहले फांसी दे दी गई।